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 ₹7 करोड़ की धोखाधड़ी: कैसे वर्धमान ग्रुप के चेयरमैन एस.पी. ओसवाल साइबर ठगी का शिकार हुए

Inside the ₹7 Crore Scam: How Vardhman Group Chairman SP Oswal Was Duped

How Vardhman Group Chairman SP Oswal Was Duped

 ₹7 करोड़ की धोखाधड़ी: कैसे वर्धमान ग्रुप के चेयरमैन एस.पी. ओसवाल साइबर ठगी का शिकार हुए


परिचय

भारत में साइबर अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं, और इसके शिकार अक्सर वे लोग होते हैं जो उच्च सामाजिक या आर्थिक स्थिति में होते हैं। हाल ही में हुई एक घटना में, वर्धमान ग्रुप के चेयरमैन एस.पी. ओसवाल को एक साइबर धोखाधड़ी में ₹7 करोड़ की हानि उठानी पड़ी। इस लेख में, हम देखेंगे कि कैसे धोखेबाजों ने ओसवाल को इतनी बड़ी रकम देने के लिए राजी किया, इस धोखाधड़ी के पीछे की तकनीक क्या थी, और यह घटना कैसे घटी।


धोखाधड़ी की शुरुआत

अगस्त 2024 के अंत में, एस.पी. ओसवाल को एक फोन कॉल आया जिसमें बताया गया कि उनका फोन कनेक्शन 2 घंटे में कट जाएगा। कॉलर ने कहा कि इसे रोकने के लिए उन्हें एक नंबर दबाने की आवश्यकता है। बिना किसी संदेह के, ओसवाल ने “9” दबाया, जिससे धोखाधड़ी की प्रक्रिया शुरू हुई।

इसके बाद, कॉलर ने खुद को सीबीआई (सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन) का अधिकारी बताया और दावा किया कि उनके कैनरा बैंक खाते में कुछ वित्तीय अनियमितताएं पाई गई हैं। उन्होंने कहा कि यह खाता अवैध लेनदेन में इस्तेमाल हो रहा है, और अगर ओसवाल ने तुरंत कार्रवाई नहीं की, तो उन्हें कानूनी परेशानी का सामना करना पड़ेगा।


कैसे धोखेबाजों ने ओसवाल को राजी किया

  1. अधिकारियों का भेस: धोखेबाजों ने खुद को सीबीआई के अधिकारी बताकर ओसवाल का विश्वास जीत लिया। उनके पास ओसवाल की व्यक्तिगत जानकारी थी, जिससे उनकी बातों में विश्वसनीयता आ गई। उन्होंने कानूनी कार्रवाई का डर दिखाकर ओसवाल को तत्काल कदम उठाने पर मजबूर कर दिया।

  2. डर और दबाव: धोखेबाजों ने ओसवाल को डराने और दबाव डालने के लिए कानूनी परिणामों की धमकी दी। उन्होंने वित्तीय अनियमितताओं और कानूनी मुसीबतों का हवाला देकर तुरंत प्रतिक्रिया करने के लिए मजबूर किया, जो साइबर धोखाधड़ी में आम रणनीति है।

  3. सोशल इंजीनियरिंग: धोखेबाजों ने सोशल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल किया, जो कि एक ऐसी तकनीक है जिसमें इंसानी मनोविज्ञान का फायदा उठाकर जानकारी या संपत्ति हासिल की जाती है। उन्होंने ओसवाल की प्रतिष्ठा और व्यवसाय पर खतरा दिखाकर उन्हें ठगी का शिकार बनाया।


धोखाधड़ी के पीछे की तकनीक

  1. कॉलर आईडी स्पूफिंग: धोखेबाजों ने कॉलर आईडी स्पूफिंग का उपयोग किया जिससे कॉलर की असली पहचान छुपाई जा सके। इससे कॉल को सरकारी एजेंसी या बैंक से आ रहा होने का दिखावा किया गया, जिससे ओसवाल को यह कॉल वास्तविक लगने लगी।

  2. इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पांस (IVR): धोखेबाजों ने ओसवाल से फोन पर एक नंबर दबाने को कहा, जिससे उन्होंने IVR सिस्टम का उपयोग किया। यह तकनीक आमतौर पर पीड़ित की पुष्टि करने के लिए उपयोग की जाती है ताकि पीड़ित को असली लगने वाले संवाद स्थापित किए जा सकें।

  3. फिशिंग रणनीति: इस ठगी में फिशिंग की तरह की रणनीतियों का भी उपयोग किया गया। ओसवाल को यह यकीन दिलाया गया कि उनकी संपत्ति खतरे में है और अगर वे तुरंत कार्रवाई नहीं करेंगे, तो वे कानूनी परेशानी में फंस सकते हैं।


धोखाधड़ी कैसे हुई

  1. कदम-दर-कदम धोखा: एक बार जब धोखेबाजों ने ओसवाल का विश्वास जीत लिया, तो उन्होंने ओसवाल को विश्वास दिलाया कि उन्हें अपनी संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए कुछ धनराशि ट्रांसफर करनी होगी। उन्होंने कई बार पैसे ट्रांसफर कराए, जिसमें कुल ₹7 करोड़ की राशि शामिल थी।

  2. कई बार ट्रांसफर: ओसवाल ने कुल ₹7 करोड़ की धनराशि कई बार में ट्रांसफर की, हर बार यह सोचकर कि वह अपनी संपत्ति को सुरक्षित कर रहे हैं।

  3. फर्जी कोर्टरूम और डिजिटल अरेस्ट: धोखेबाजों ने एक फर्जी डिजिटल अरेस्ट का नाटक रचा। उन्होंने ओसवाल को यह विश्वास दिलाया कि उनका मामला एक वर्चुअल कोर्ट में चल रहा है और अगर उन्होंने सहयोग नहीं किया तो उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है।


गिरफ्तारी और धन की वसूली

इस धोखाधड़ी के बावजूद, पुलिस ने मामले की जांच की और धोखाधड़ी में शामिल गुवाहाटी, असम के दो व्यक्तियों को गिरफ्तार किया। पुलिस ने इन व्यक्तियों से ₹5 करोड़ की राशि भी बरामद की। बाकी धनराशि की खोज अभी जारी है​


मुख्य सबक

इस मामले से यह साफ होता है कि कोई भी साइबर अपराध का शिकार हो सकता है। यहां कुछ महत्वपूर्ण सबक दिए गए हैं:

  1. पहले सत्यापित करें: कभी भी किसी सरकारी एजेंसी या वित्तीय संस्था के प्रतिनिधियों की पहचान की पुष्टि किए बिना उन पर भरोसा न करें।

  2. अतिआवश्यक अनुरोधों पर संदेह करें: धोखेबाज अक्सर पीड़ितों को जल्दबाजी में निर्णय लेने के लिए मजबूर करते हैं। धनराशि ट्रांसफर करने से पहले हमेशा अपने विश्वसनीय सलाहकारों से सलाह लें।

  3. जागरूकता और शिक्षा: साइबर सुरक्षा पर जागरूकता बढ़ाना और कर्मचारियों को सोशल इंजीनियरिंग और फिशिंग रणनीतियों को पहचानने के लिए प्रशिक्षित करना महत्वपूर्ण है।

  4. तकनीकी सतर्कता: तकनीक का इस्तेमाल धोखाधड़ी के लिए भी किया जा सकता है, इसलिए कॉलर आईडी स्पूफिंग और अन्य साइबर धोखाधड़ी तकनीकों से सतर्क रहना जरूरी है।


निष्कर्ष

एस.पी. ओसवाल के ₹7 करोड़ की ठगी का मामला यह दर्शाता है कि साइबर अपराधी तकनीक और मनोविज्ञान का इस्तेमाल कर लोगों को ठगने में माहिर हो गए हैं।

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