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सोशल मीडिया पर फेक न्यूज शेयर करने का प्रभाव: इसके परिणाम, केस स्टडीज़ और भारत में कानूनी ढांचा

Impact of Sharing Fake News on Social Media


आज के डिजिटल युग में, सोशल मीडिया प्लेटफार्मों ने लाखों लोगों के लिए जानकारी का मुख्य स्रोत बनकर उभरे हैं। हालांकि, इन प्लेटफार्मों के बढ़ने के साथ-साथ फेक न्यूज के प्रसार में भी तेजी आई है। फेक न्यूज, जिसे झूठी या भ्रामक जानकारी के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, असल में गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम सोशल मीडिया पर फेक न्यूज के शेयरिंग के प्रभाव, वास्तविक जीवन के केस स्टडीज़ और भारत में इस बढ़ती समस्या से निपटने के लिए कानूनी ढांचे की चर्चा करेंगे।


फेक न्यूज का जीवन पर प्रभाव


सोशल मीडिया पर फेक न्यूज के तेज़ी से प्रसार के गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जो व्यक्तियों, समुदायों और यहां तक कि पूरे राष्ट्रों को प्रभावित कर सकते हैं। इसके कुछ महत्वपूर्ण प्रभाव निम्नलिखित हैं:


1. **गलत जानकारी और दहशत**: फेक न्यूज गलत जानकारी फैलाकर व्यापक दहशत और भय पैदा कर सकती है। उदाहरण के लिए, COVID-19 महामारी के दौरान, इलाज, वैक्सीन और रोकथाम के तरीकों के बारे में झूठी जानकारी से भ्रम उत्पन्न हुआ और कई लोगों ने हानिकारक व्यवहार अपनाया।


2. **सामाजिक अशांति**: फेक न्यूज हिंसा और सामाजिक अशांति को भड़काने की शक्ति रखती है। समुदायों, धर्मों या जातीय समूहों के बारे में झूठी कहानियाँ नफरत को बढ़ावा दे सकती हैं, जिससे दंगे, हिंसा और अन्य प्रकार की हिंसा हो सकती है। इससे समाज में लंबे समय तक विभाजन उत्पन्न हो सकते हैं।


3. **प्रतिष्ठा को नुकसान**: फेक न्यूज से व्यक्तियों और संगठनों की प्रतिष्ठा को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। सोशल मीडिया पर फैलाए गए झूठे आरोप या अफवाहें करियर, व्यवसाय और व्यक्तिगत जीवन को नष्ट कर सकती हैं। ऐसी सामग्री की वायरलिटी इसे नियंत्रित या नुकसान को कम करने में कठिन बना देती है।


4. **लोकतंत्र को कमजोर करना**: फेक न्यूज चुनावों के दौरान गलत जानकारी फैलाकर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर कर सकती है। इससे मतदाता व्यवहार प्रभावित हो सकता है और जनमत को हेरफेर किया जा सकता है, जिससे अनुचित परिणाम उत्पन्न होते हैं और लोकतांत्रिक संस्थानों में विश्वास को कम किया जाता है।


5. **आर्थिक नुकसान**: व्यवसायों को फेक न्यूज के कारण वित्तीय नुकसान उठाना पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, किसी कंपनी के वित्तीय स्वास्थ्य, उत्पाद पुन:प्राप्ति या अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में झूठी रिपोर्टें शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव, उपभोक्ता विश्वास की कमी और अंततः बिक्री में गिरावट का कारण बन सकती हैं।


केस स्टडीज़: फेक न्यूज के प्रभाव के वास्तविक जीवन के उदाहरण


1. **मुज़फ्फरनगर दंगे (2013)**:

2013 में, उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिसमें 60 से अधिक लोगों की मौत हो गई और हजारों लोग विस्थापित हो गए। इस हिंसा के पीछे एक फेक वीडियो का हाथ था, जिसमें झूठा दावा किया गया था कि एक हिंदू लड़के को एक मुस्लिम भीड़ द्वारा मारा गया था। बाद में पता चला कि वीडियो एक अन्य देश का था और संबंधित घटना से कोई संबंध नहीं था, लेकिन तब तक हिंसा बढ़ चुकी थी।


2. **COVID-19 के बारे में गलत जानकारी**:

COVID-19 महामारी के दौरान, वायरस के उत्पत्ति, संचरण के तरीकों और उपचार के बारे में फेक न्यूज तेजी से फैली। भारत में, इस गलत जानकारी के कारण लोग अस्पताल जाने से कतराने लगे, अप्रमाणित और खतरनाक घरेलू उपचारों को अपनाने लगे, और यहां तक कि झूठी धारणाओं के आधार पर स्वास्थ्य कर्मियों पर हमला करने लगे।


3. **बच्चों के अपहरण की अफवाहें**:

2018 में, व्हाट्सएप पर बच्चों के अपहरणकर्ताओं के बारे में फेक न्यूज मैसेज प्रसारित हुआ, जिससे भीड़ ने निर्दोष लोगों की लिंचिंग कर दी। इस अफवाह ने स्थानीय लोगों में कानून अपने हाथ में लेने की प्रवृत्ति पैदा कर दी। इस घटना में, कर्नाटक, महाराष्ट्र और असम सहित विभिन्न राज्यों में 20 से अधिक लोगों की हत्या कर दी गई।


भारत में फेक न्यूज से निपटने के लिए कानूनी ढांचा


भारत ने फेक न्यूज की गंभीरता को समझा है और इससे निपटने के लिए विभिन्न कानूनी उपाय किए हैं। नीचे कुछ महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान और भारतीय सरकार द्वारा उठाए गए कदम दिए गए हैं:


1. **भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860**:

- **धारा 505**: इस धारा में सार्वजनिक शरारत फैलाने वाले बयानों को शामिल किया गया है। यह किसी वर्ग या समुदाय को किसी अन्य के खिलाफ अपराध करने के लिए उकसाने या भय या आतंक फैलाने के इरादे से कोई बयान, अफवाह या रिपोर्ट बनाने, प्रकाशित करने या प्रसारित करने के कृत्य को अपराध बनाता है।

- **धारा 153**: यह धारा धर्म, जाति, जन्मस्थान, निवास स्थान, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने वाले व्यक्तियों को दंडित करती है, या जो कृत्य सामंजस्य बनाए रखने के लिए हानिकारक हैं।


2. **सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000**:

- **धारा 66D**: इस धारा में कंप्यूटर संसाधनों का उपयोग करके धोखाधड़ी से व्यक्ति के प्रतिरूपण से निपटा गया है। इसे फेक न्यूज फैलाने वाले व्यक्तियों पर लागू किया जा सकता है जिससे धोखाधड़ी या धोखे का परिणाम हो सकता है।

- **धारा 69A**: यह प्रावधान सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था के हित में या किसी अपराध को उकसाने से रोकने के लिए किसी भी प्लेटफार्म पर सूचना के एक्सेस को ब्लॉक करने का अधिकार देता है।


3. **मध्यस्थों के लिए दिशानिर्देश**:

- **आईटी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021** के तहत, सोशल मीडिया प्लेटफार्मों और मध्यस्थों को अवैध या हानिकारक सामग्री प्राप्त होने के बाद इसे हटाने के लिए निर्धारित समय में कार्रवाई करनी होती है। इसमें फेक न्यूज का प्रसार शामिल है।


4. **प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) फैक्ट चेक**:

- सरकार ने पीआईबी फैक्ट चेक इकाई स्थापित की है, जो सरकारी नीतियों और पहलों से संबंधित समाचारों का सत्यापन करती है। यह इकाई सक्रिय रूप से फेक न्यूज को खारिज करती है और जनता को सटीक जानकारी प्रदान करती है।


5. **राज्य स्तर की पहल**:

- कई राज्यों ने क्षेत्रीय स्तर पर फेक न्यूज से निपटने के लिए अपने स्वयं के फैक्ट चेकिंग इकाइयां स्थापित की हैं। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में सक्रिय इकाइयां हैं जो अपने अधिकार क्षेत्र में फेक न्यूज की निगरानी और रोकथाम करती हैं।


6. **सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की भूमिका**:

- फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप जैसी सोशल मीडिया कंपनियों ने भी फेक न्यूज के प्रसार को रोकने के लिए उपायों की शुरुआत की है। इनमें संभावित झूठी जानकारी को फ्लैग करना, संदेशों के फॉरवर्डिंग को सीमित करना और फैक्ट चेकिंग संगठनों के साथ सहयोग करना शामिल है।


निष्कर्ष


सोशल मीडिया पर फेक न्यूज का प्रसार केवल एक डिजिटल उपद्रव नहीं है, बल्कि यह समाज के सामंजस्य, व्यक्तिगत सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है। उपरोक्त केस स्टडीज़ इस बात को उजागर करती हैं कि फेक न्यूज का कितना विनाशकारी प्रभाव हो सकता है, चाहे वह सांप्रदायिक हिंसा भड़काना हो या वैश्विक स्वास्थ्य संकट के दौरान गलत जानकारी फैलाना।


भारत में कानूनी ढांचा मजबूत है, लेकिन यह फेक न्यूज की चुनौती का सामना करने के लिए लगातार अनुकूलित होता रहता है। फेक न्यूज से निपटने में सार्वजनिक जागरूकता और डिजिटल साक्षरता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। व्यक्तियों को जानकारी की सत्यता की जांच करने, इसे साझा करने से पहले इसके परिणामों को समझने और झूठी खबरों के प्रसार के संभावित परिणामों को समझने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।


जैसे-जैसे तकनीक आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे हमें सत्य की रक्षा करने और समाज को गलत सूचना के खतरों से बचाने के प्रयास भी करने चाहिए।

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